सिरसा। भिवानी उपभोक्ता अदालत के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप मेहता ने आज प्रैस के नाम जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि उपभोक्ता से लेकर उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्ष, कर्मचारी एवं सदस्य सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि माननीय पजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक फैसले के मुताबिक उपभोक्ता अदालतों के सभी कर्मचारियों को जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कर्मचारियों के बराबर वेतन एवं भत्ते मिलने चाहिए, लेकिन सरकार इसकी अनदेखी कर रही है, जो कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना भी है। उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के अनुसार उपभोक्ता अदालत द्वारा की गई कार्रवाई न्यायिक कार्रवाई है। कर्मचारी इस बात को लेकर सरकार को अपनी बात रख चुके हैं, लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। श्री मेहता ने कहा कि कंज्यूमर एक्ट के मुताबिक उपभोक्ता अदालत के अध्यक्ष को जिला एवं सत्र न्यायाधीश के बराबर वेतन एवं भत्ते मिलने चाहिए, परंतु हरियाणा सरकार ने अभी तक इस ओर कोई गौर नहीं दिया, जबकि छठा वेतन आयोग सभी विभागों में लागू हो चुका है, परंतु उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्षों के पेय स्केल अभी तक नहीं बढ़ाए गए हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा में कई जिलों में उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद रिक्त पड़े हैं, लेकिन सरकार उस ओर भी कोई ध्यान नहीं दे रही है, जिससे उपभोक्ता अदालत लकवाग्रस्त हो गई है। वहीं समय पर उपभोक्ता को न्याय न मिलने के कारण उपभोक्ता निराश व हताश है। सरकार की अनदेखी के कारण उपभोक्ता अदालत आज मजाक बन कर रह गई है। श्री मेहता ने कहा कि एक्ट के मुताबिक उपभोक्ता अदालतों के केसों की सुनवाई तीन से पांच माह के बीच हो जानी चाहिए। जबकि हजारों केस बिना कार्रवाई के वर्षों से लंबित पड़े हैं। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता अदालतों के सदस्यों को स्थाई सदस्य माना जाए, लेकिन उनको वेतन के रूप में मात्र 10 हजार रुपये महीना ही मिलता है, जो कि आज की इस महंगाई में ऊंट के मुंह में जीरा देने के समान है। उन्होंने कहा कि सरकार की नियुक्ति नीतियों के कारण महिला सदस्यों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि महिलाओं की नियुक्ति 200-200 किलोमीटर की दूरी पर की जाती है, जो कि अति असुविधाजनक है।
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