ओढां,
पीपल्स थियेटर लहरा गागा पंजाब के निर्देशक जॉन सैमूअल ने भास्कर से बातचीत करते हुए बताया कि उन्हें कोटकपुरा कॉलेज में पढ़ार्ईं के समय से ही नाटकों में काम करने का शौक पैदा हुआ। कोटकपुरा के गांव ढिलवां कलां में 1970 में माता बलदेव कौर व पिता गेजा सिंह के घर जन्में जॉन सैमूअल ने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला से पढ़ाई के बाद उन्होंने नुक्कड़ नाटकों में भाग लेते हुए अनेक प्रकार के रोल अदा किए और फिर वे रंग कर्मी थियेटर मुंबई चले गए और वहां पर उन्होंने एक टेली फिल्म मिट्टी में काम किया। उन्होंने पंजाबी नाटककार प्रौफेसर गुरदयाल सिंह के नावल पर आधारित नाटक अन्ने घोड़े दा दान का निर्देशन किया लेकिन उन्हें मुंबई में पैसा और शोहरत रास नहीं आया तथा 4 वर्ष बाद वे इस सोच के साथ वापिस पंजाब लौट आए कि ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को अपनी कला के माध्यम से जागरूक करेंगे। उसके बाद उन्होंने अपने निर्देशन में नाटक बागां दा राखा, डेरा, बाल भगवान, मिट्टी रूदन करे सहित अनेक नाटकों का सफल निर्देशन किया और लोगों ने उन्हें खूब सराहा।
छायाचित्र: जॉन सैमूअल।
पीपल्स थियेटर लहरा गागा पंजाब के निर्देशक जॉन सैमूअल ने भास्कर से बातचीत करते हुए बताया कि उन्हें कोटकपुरा कॉलेज में पढ़ार्ईं के समय से ही नाटकों में काम करने का शौक पैदा हुआ। कोटकपुरा के गांव ढिलवां कलां में 1970 में माता बलदेव कौर व पिता गेजा सिंह के घर जन्में जॉन सैमूअल ने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला से पढ़ाई के बाद उन्होंने नुक्कड़ नाटकों में भाग लेते हुए अनेक प्रकार के रोल अदा किए और फिर वे रंग कर्मी थियेटर मुंबई चले गए और वहां पर उन्होंने एक टेली फिल्म मिट्टी में काम किया। उन्होंने पंजाबी नाटककार प्रौफेसर गुरदयाल सिंह के नावल पर आधारित नाटक अन्ने घोड़े दा दान का निर्देशन किया लेकिन उन्हें मुंबई में पैसा और शोहरत रास नहीं आया तथा 4 वर्ष बाद वे इस सोच के साथ वापिस पंजाब लौट आए कि ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को अपनी कला के माध्यम से जागरूक करेंगे। उसके बाद उन्होंने अपने निर्देशन में नाटक बागां दा राखा, डेरा, बाल भगवान, मिट्टी रूदन करे सहित अनेक नाटकों का सफल निर्देशन किया और लोगों ने उन्हें खूब सराहा।
छायाचित्र: जॉन सैमूअल।
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