माता हरकी देवी महिला महाविद्यालय के सभागार में महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में महाविद्यालय की छात्राओं व प्रवक्ताओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया और मंच के माध्यम से खुलकर अपने विचार व्यक्त किए।
महाविद्यालय की उपप्राचार्या डॉ. अनीता छाबड़ा ने कहा कि मात्र 8 मार्च को महिला दिवस मनाकर महिलाओं को पूरा मान सम्मान व अधिकार नहीं मिल सकते। महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग लंबे समय से उठ रही है लेकिन यह बिल अभी तक पास नहीं हुआ है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि उनका निजी मत है कि महिलाओं की संख्या पुरुषों के अनुपात में कम है इसलिए यह आरक्षण की मांग 33 प्रतिशत की बजाय 50 प्रतिशत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए स्वयं आगे आना होगा और महिला जगत को जागरूक करना होगा क्योंकि यदि हक सम्मान से न मिलें तो उन्हें छीनना पड़ता है।
बी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा ममता शर्मा ने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार स्वयं मांगकर समाज को यह बताना होगा कि उनका भी एक अस्तित्व है, एक सजीव अस्तित्व, वे को वस्तु नहीं हैं। यह करने के लिए स्वयं महिलाओं को प्रयास करने होंगे क्योंकि ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा इस महिला दिवस पर नारी जगत से यही आह्वान है कि—
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर, सच अनवेंषण के पथ पर निकलो नारी,
तुम बहुत समय तक बनी दीप कुटिया का, अब बनो क्रांति की ज्वाला की चिंगारी ।
राजनीति विज्ञान की व्याख्याता श्रीमती रजनी मेहता ने कहा कि नारी सशक्तिकरण शब्द संकेत करता है नारी की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक शक्ति की मजबूत स्थिति का। आज हम जिस दौर में रह रहे हैं वहां महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक कामयाब व उच्च दर्जा प्राप्त कर चुकी हैं। महिलाएं आर्थिक क्षेत्र के साथ साथ गृहस्थ जीवन भी बाखूबी निभा रही हैं। प्राचीनकाल की तुलना में समाज में महिलाओं का स्थान आज काफी सुधर चुका है लेकिन फिर भी स्थिति पूर्णत: नहीं सुधरी है। आत्मनिर्भर होने के बावजूद उसे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे दहेजप्रथा, घरेलु हिंसा और मानसिक यातनाएं जिनकी बजह से नारी की शारीरिक स्थिति मजबूत होने की बजाय कमजोर होती जाएगी। मैं मानती हूं की असल में नारी यशक्तिकरण तब होगा जब यह समाज नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, उसकी कामयाबी का सम्मान करेगा और उसे अच्छा वातावरण देगा जिसमें वह स्वछंद जीवन जी सके। इसके साथ साथ स्वयं नारी को भी जागरूक होना होगा, उसे अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठानी होगी। मेरी गुजारिश है इस समाज से कि नारी जो सृष्टि की रचियता है उसका सम्मान करो, क्योंकि जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है।
अंग्रेजी प्रवक्ता श्रीमती हर्षलता ने कहा कि महिला सशक्तिकरण महिलाओं के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास की ओर इशारा करता है, परंतु वर्तमान नारी भले ही शैक्षणिक, आर्थक व सामाजिक रूप से सशक्त है परंतु व्यक्तिगत रूप में उसका अस्तित्व आज भी असमंजस की स्थिति में है। हर क्षेत्र में पुरुषों को पीछे छोडऩे वाली महिला व्यक्तिगत जिंदगी में आज भी बहुत पीछे है और अधूरी है संपूर्ण विकास के बावजूद भी। कारण है एक नारी ही दूसरी नारी के मार्ग की सबसे बड़ी वाधक है। जब तक महिलाएं एक दूसरे की भावनाओं व अस्तित्व को सम्मान नहीं देंगी तब तक एक महिला पूर्ण रूप से सशक्त नहीं हो सकती।
कामर्स की लेक्चरार चंचल सेतिया ने कहा कि आज के युग में महिला सशक्त है और जागरूक है लेकिन क्या वो अपने अधिकारों को पाने में भी समर्थ है? शायद कहीं न कहीं उसकी भावुकता उसके विकास के रास्ते में रूकावट बनती है। क्योंकि जब कभी भी भरपूर आत्मविश्वास के साथ वह अपने आप को बेटी, बहन, पत्नी या मां के रूप में देखती है तो कमजोर पड़ जाती है। वह सही मायनों में तभी सशक्त हो सकती है जब उसे अंदर व बाहर से शक्ति का एहसास हो व समर्थन हो तो उसका कोमल हृदय कमजोर नहीं पड़ सकता।
अंग्रेजी विभाग की प्रवक्ता अनामिका चक्रवर्ती ने कहा कि 8 मार्च के दिन को दुनिया भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस महिला की उपलब्धियों, सफलताओं एवं निरंतर विकास को व्यक्त करने का और उसके प्रति आभार व्यक्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है। पहले महिलाएं घर की चारदीवारी तक और परिवार के पालन पोषण तक ही सीमित थी परंतु आज की महिला अपने अधिकार और कर्तव्य जानती है। आज वह एक सशक्त परिवार और राष्ट्र का आधार है और उसके इस विकास को निरंतर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
छायाचित्र: 1 अनीता छाबड़ा, 2 ममता शर्मा, 3 रजनी मेहता, 4 हर्षलता, 5 चंचल सेतिया, 6 अनामिका।
महाविद्यालय की उपप्राचार्या डॉ. अनीता छाबड़ा ने कहा कि मात्र 8 मार्च को महिला दिवस मनाकर महिलाओं को पूरा मान सम्मान व अधिकार नहीं मिल सकते। महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग लंबे समय से उठ रही है लेकिन यह बिल अभी तक पास नहीं हुआ है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि उनका निजी मत है कि महिलाओं की संख्या पुरुषों के अनुपात में कम है इसलिए यह आरक्षण की मांग 33 प्रतिशत की बजाय 50 प्रतिशत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए स्वयं आगे आना होगा और महिला जगत को जागरूक करना होगा क्योंकि यदि हक सम्मान से न मिलें तो उन्हें छीनना पड़ता है।
बी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा ममता शर्मा ने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार स्वयं मांगकर समाज को यह बताना होगा कि उनका भी एक अस्तित्व है, एक सजीव अस्तित्व, वे को वस्तु नहीं हैं। यह करने के लिए स्वयं महिलाओं को प्रयास करने होंगे क्योंकि ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा इस महिला दिवस पर नारी जगत से यही आह्वान है कि—
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर, सच अनवेंषण के पथ पर निकलो नारी,
तुम बहुत समय तक बनी दीप कुटिया का, अब बनो क्रांति की ज्वाला की चिंगारी ।
राजनीति विज्ञान की व्याख्याता श्रीमती रजनी मेहता ने कहा कि नारी सशक्तिकरण शब्द संकेत करता है नारी की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक शक्ति की मजबूत स्थिति का। आज हम जिस दौर में रह रहे हैं वहां महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक कामयाब व उच्च दर्जा प्राप्त कर चुकी हैं। महिलाएं आर्थिक क्षेत्र के साथ साथ गृहस्थ जीवन भी बाखूबी निभा रही हैं। प्राचीनकाल की तुलना में समाज में महिलाओं का स्थान आज काफी सुधर चुका है लेकिन फिर भी स्थिति पूर्णत: नहीं सुधरी है। आत्मनिर्भर होने के बावजूद उसे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे दहेजप्रथा, घरेलु हिंसा और मानसिक यातनाएं जिनकी बजह से नारी की शारीरिक स्थिति मजबूत होने की बजाय कमजोर होती जाएगी। मैं मानती हूं की असल में नारी यशक्तिकरण तब होगा जब यह समाज नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, उसकी कामयाबी का सम्मान करेगा और उसे अच्छा वातावरण देगा जिसमें वह स्वछंद जीवन जी सके। इसके साथ साथ स्वयं नारी को भी जागरूक होना होगा, उसे अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठानी होगी। मेरी गुजारिश है इस समाज से कि नारी जो सृष्टि की रचियता है उसका सम्मान करो, क्योंकि जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है।
अंग्रेजी प्रवक्ता श्रीमती हर्षलता ने कहा कि महिला सशक्तिकरण महिलाओं के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास की ओर इशारा करता है, परंतु वर्तमान नारी भले ही शैक्षणिक, आर्थक व सामाजिक रूप से सशक्त है परंतु व्यक्तिगत रूप में उसका अस्तित्व आज भी असमंजस की स्थिति में है। हर क्षेत्र में पुरुषों को पीछे छोडऩे वाली महिला व्यक्तिगत जिंदगी में आज भी बहुत पीछे है और अधूरी है संपूर्ण विकास के बावजूद भी। कारण है एक नारी ही दूसरी नारी के मार्ग की सबसे बड़ी वाधक है। जब तक महिलाएं एक दूसरे की भावनाओं व अस्तित्व को सम्मान नहीं देंगी तब तक एक महिला पूर्ण रूप से सशक्त नहीं हो सकती।
कामर्स की लेक्चरार चंचल सेतिया ने कहा कि आज के युग में महिला सशक्त है और जागरूक है लेकिन क्या वो अपने अधिकारों को पाने में भी समर्थ है? शायद कहीं न कहीं उसकी भावुकता उसके विकास के रास्ते में रूकावट बनती है। क्योंकि जब कभी भी भरपूर आत्मविश्वास के साथ वह अपने आप को बेटी, बहन, पत्नी या मां के रूप में देखती है तो कमजोर पड़ जाती है। वह सही मायनों में तभी सशक्त हो सकती है जब उसे अंदर व बाहर से शक्ति का एहसास हो व समर्थन हो तो उसका कोमल हृदय कमजोर नहीं पड़ सकता।
अंग्रेजी विभाग की प्रवक्ता अनामिका चक्रवर्ती ने कहा कि 8 मार्च के दिन को दुनिया भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस महिला की उपलब्धियों, सफलताओं एवं निरंतर विकास को व्यक्त करने का और उसके प्रति आभार व्यक्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है। पहले महिलाएं घर की चारदीवारी तक और परिवार के पालन पोषण तक ही सीमित थी परंतु आज की महिला अपने अधिकार और कर्तव्य जानती है। आज वह एक सशक्त परिवार और राष्ट्र का आधार है और उसके इस विकास को निरंतर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
छायाचित्र: 1 अनीता छाबड़ा, 2 ममता शर्मा, 3 रजनी मेहता, 4 हर्षलता, 5 चंचल सेतिया, 6 अनामिका।
भारतीय शिक्षा में 45% महिलायो का योगदान है ।
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