हिसार, 30 मार्च। शिक्षा के पश्चात् दीक्षा का वास्तविक अभिप्राय शिक्षा से प्राप्त गुणों को व्यवहारिक जीवन समाज में समाहित करना है। शिक्षा विकास प्रक्रिया एक बड़ा आधार है। यह बात कुलपति डॉ0 एम.एल.रंगा ने स्थानीय राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए कही।
डॉ0 रंगा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा का सम्बन्ध केवल एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि समस्त परिवार, समाज, राज्य, राष्ट्र एवं मानवता से है। सकारात्मक सोच के आधार पर प्राप्त शिक्षा के द्वारा ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परिकल्पना को साकार रूप प्रदान किया जा सकता है। आज हमारे देश में मात्र 12ः युवा ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पा रहे है, जबकि हमारा लक्ष्य लगभग 30ः युवाओं को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसके लिए अभी समय और लगेगा।
प्राचीनकाल में नालन्दा, तक्षशिला एवं विक्रमशिला तीन विश्वविद्यालय पूरे देश को उच्च शिक्षा दे रहे हैं, किन्तु आज हमारे देश में 66000 महाविद्यालय तथा 532 विश्वविद्यालय इसके बावजूद व्यवहारिक एवं नैतिक शिक्षा वास्तविकता से कोसों दूर है। निजी शिक्षा संस्थान शिक्षा की प्रगति में भी सक्रिय सहयोग दे रहे हैं। विद्यार्थियों को जागरूक करते हुए कहा कि जिस प्रकार की नियत रखोगे आपकी नीति भी उसी प्रकार की होगी। जिस भी क्षेत्र में काम करो उसे उत्कृष्ट बनाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए।
कुलपति ने कहा कि राष्ट्रीयता की भावना पर विशेष बल देना चाहिए और अपनी जन्मभूमि को भूलकर भी नहीं भूलना चाहिए। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि एवं हवा) पर विशेष ध्यान देना होगा। भू-संरक्षण, जल-संरक्षण एवं वायु शुद्ध बनाना हमारा दायित्व ही नहीं नैतिक कर्त्तव्य भी है। सह अस्तित्व ;ब्व.मगपेजमदबमद्ध की भावना के आधार पर कार्य करना चाहिए। एक संकल्प करे कि परिवार के सदस्य एक समय एक साथ प्रतिदिन भोजन करे अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा। दैवीय संस्कृति ;ूवता बनसजनतमद्ध को सोच बनानी होगी। शिक्षा का सीधा व सरल अर्थ स्वयं शिक्षित होकर दूसरों को शिक्षित करते हुए शैक्षिक वातावरण बनाना है। तभी सही अर्थों में सत्य शिवं सुन्दरं की सोच सार्थक होगी।
इस अवसर पर प्राचार्य डॉ0 रवि शर्मा ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए लगभग 630 विद्यार्थियों को उपाधियाँ वितरित की। मंच पर श्री यू.एस. सैनी, डॉ0 पी.के. शर्मा, श्री डी.एस. खर्ब, डॉ. एस.के. मिश्रा, श्री के.एल. दलाल, श्रीमती सन्तोष मलिक, श्री करतार सिंह एवं श्रीमती एस. बामल आदि उपस्थित थे। पूर्व प्राध्यापक जी.सी. आर्य, दिलबाग सिंह, राममेहर मलिक व आर.एस. जाखड़ आदि ने भी अपनी सहभागिता की। इस अवसर पर डॉ0 रेणुका गंभीर के नेतृत्व में एक शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया।
डॉ0 रंगा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा का सम्बन्ध केवल एक व्यक्ति से नहीं, बल्कि समस्त परिवार, समाज, राज्य, राष्ट्र एवं मानवता से है। सकारात्मक सोच के आधार पर प्राप्त शिक्षा के द्वारा ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परिकल्पना को साकार रूप प्रदान किया जा सकता है। आज हमारे देश में मात्र 12ः युवा ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पा रहे है, जबकि हमारा लक्ष्य लगभग 30ः युवाओं को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसके लिए अभी समय और लगेगा।
प्राचीनकाल में नालन्दा, तक्षशिला एवं विक्रमशिला तीन विश्वविद्यालय पूरे देश को उच्च शिक्षा दे रहे हैं, किन्तु आज हमारे देश में 66000 महाविद्यालय तथा 532 विश्वविद्यालय इसके बावजूद व्यवहारिक एवं नैतिक शिक्षा वास्तविकता से कोसों दूर है। निजी शिक्षा संस्थान शिक्षा की प्रगति में भी सक्रिय सहयोग दे रहे हैं। विद्यार्थियों को जागरूक करते हुए कहा कि जिस प्रकार की नियत रखोगे आपकी नीति भी उसी प्रकार की होगी। जिस भी क्षेत्र में काम करो उसे उत्कृष्ट बनाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए।
कुलपति ने कहा कि राष्ट्रीयता की भावना पर विशेष बल देना चाहिए और अपनी जन्मभूमि को भूलकर भी नहीं भूलना चाहिए। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि एवं हवा) पर विशेष ध्यान देना होगा। भू-संरक्षण, जल-संरक्षण एवं वायु शुद्ध बनाना हमारा दायित्व ही नहीं नैतिक कर्त्तव्य भी है। सह अस्तित्व ;ब्व.मगपेजमदबमद्ध की भावना के आधार पर कार्य करना चाहिए। एक संकल्प करे कि परिवार के सदस्य एक समय एक साथ प्रतिदिन भोजन करे अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा। दैवीय संस्कृति ;ूवता बनसजनतमद्ध को सोच बनानी होगी। शिक्षा का सीधा व सरल अर्थ स्वयं शिक्षित होकर दूसरों को शिक्षित करते हुए शैक्षिक वातावरण बनाना है। तभी सही अर्थों में सत्य शिवं सुन्दरं की सोच सार्थक होगी।
इस अवसर पर प्राचार्य डॉ0 रवि शर्मा ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए लगभग 630 विद्यार्थियों को उपाधियाँ वितरित की। मंच पर श्री यू.एस. सैनी, डॉ0 पी.के. शर्मा, श्री डी.एस. खर्ब, डॉ. एस.के. मिश्रा, श्री के.एल. दलाल, श्रीमती सन्तोष मलिक, श्री करतार सिंह एवं श्रीमती एस. बामल आदि उपस्थित थे। पूर्व प्राध्यापक जी.सी. आर्य, दिलबाग सिंह, राममेहर मलिक व आर.एस. जाखड़ आदि ने भी अपनी सहभागिता की। इस अवसर पर डॉ0 रेणुका गंभीर के नेतृत्व में एक शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया।
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