खंड ओढ़ां के गांव रोहिडांवाली में स्थित ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम में रविवार को आयोजित मासिक सत्संग में उपदेष्टा हरलाल सिंह ने ब्रह्मविद्या के महत्व और उसकी आवश्यकता के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि ब्रह्मविद्या को हम पराविद्या, आध्यात्मविद्या व मधुविद्या भी कहते हैं। ब्रह्मविद्या द्वारा आध्यात्म क्षेत्र के समस्त तत्वों का प्रत्यक्ष योगभ्यास विशेष भूमि पर साधना के द्वारा केवल सद्गुरु द्वारा प्राप्त होता है न कि मन, बुद्धि व इंद्रीयों द्वारा। प्राकृतिक भूमियों में साधन अभ्यास के द्वारा अथवा प्राकृतिक साधनों द्वारा केवल कुछ फल प्राप्त होते हैं न कि आत्मप्रत्यक्ष होती है। ब्रह्मविद्या एक तत्व है जिसको जान लेने से सब जाना जाता है। ब्रह्मविद्या सद्गुरु द्वारा जानी जा सकती है इधर उधर स्वयं ग्रंथ पढ़कर नहीं। कई लोग कहते हैं कि ईश्वर प्राप्ति के अनेकों मार्ग है वे अबोध बालक हैं और बड़ी भूल में हैं। ब्रह्मप्राप्ति का मार्ग एक ही है जो सुष्मन द्वार है इस भेद कला को सद्गुरु उपदेश करते हैं। यह गोपनीय महापथ केवल गुरु प्रसाद से ही प्राप्त होता है अन्य उपाय से नहीं। आध्यात्मविद्या ब्रह्मविद्या के प्रकाश में सब काम वासनाएं जलकर आत्मा विशुद्ध हो जाती है और शुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार करके जीवन मुक्ति प्राप्त होती है। इस अवसर पर साधक राजाराम गोदारा सहित अनेक साधक उपस्थित थे।
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