Friday, April 22, 2011

सेव मदर अर्थ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया

हिसार
पृथ्वी दिवस के अवसर पर आज गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के पर्यावरण विज्ञान एवं अभियंत्रिकी विभाग ने सोसायटी फार प्रमोशन आफ सांईस एण्ड टैक्नलाजी के साथ मिलकर सेव मदर अर्थ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उदघाटन विश्वविद्यालय के कुलपति डा एम एल रंगा ने किया। प्रश्नोत्तरी, सलोगन व पोस्टर प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी  पुरस्कृत किया गया। इस कार्यशाला में नैश्नल फिजिकल लैबोट्री, नई दिल्ली के डा एच एन दत्ता, पर्यावरणविद् डा राम निवास यादव, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो वी राज मनी व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो दिवेश के सिन्हा ने विभिन्न सत्रों में अपने विशेष व्याख्यान दिए। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो आर एस जागलान, प्रो एम एस तुरान, प्रो सी पी कौशिक, प्रो अनुभा कौशिक, प्रो धमेन्द्र कुमार, प्रो मिलिंद पारले, प्रो एस सी कुण्डू, प्रो बी सी खटकड़, प्रो मनोज दयाल, डा आर भास्कर, डा आशा गुप्ता, विभिन्न विभागों के अधिष्ठता, विभागाध्यक्ष, अधिकारीगण, शिक्षकगण, शोधकर्ता व विद्यार्थीगण उपस्थित थे। पृथ्वी दिवस-2011 का थीम ए बिलियन एक्टस आफ ग्रीन है। इस अवसर पर पर्यावरण संजीवनी नामक पत्रिका का भी विमोचन किया गया। 
कुलपति डा एम एल रंगा ने कहा कि पृथ्वी दिवस हमें पृथ्वी से जुड़े विभिन्न पहलूओं पर चिंतन करने का मौका देता है। पृथ्वी के पर्यावरण के असंतुलित होने के कारण पृथ्वी पर बहुत से जीव जन्तु या तो विलुप्त हो गए हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।  डॉ रंगा ने कहा कि पर्यावरण को स्वस्थ रखने में जीव जन्तुओं, जल व पेड़ पौधों की अहम भूमिका है इसलिए इनका सरंक्षण अति आवश्यक है। उन्होने कहा कि पर्यावरण दूषित होने के कारण अनेकों खतरनाक बीमारियां उत्पन्न हो गई है जो कि धीरे-धीरे मानव जाति के साथ-साथ अन्य प्राणियों के अस्तित्व के लिए भी खतरा बन गई हैं। मानव जीवन को बचाने के लिए प्रकृति की रक्षा जरूरी है। मानव का अस्तित्व पेड़ पौधों, जीव जन्तुओं व वनस्पति पर निर्भर है और इसके लिए प्रकृति की रक्षा करना सभी का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। उन्होने कहा कि पर्यावरण परिवर्तन समूचे विश्व के लिए एक गंभीर चुनौती है। पर्यावरण परिवर्तन का असर जल, जंगल, जमीन, नदी, समुंद्र, प्राकृतिक संसाधन, पशु-पशुओं, मनुष्य सभी पर देखा जा सकता है। उन्होने बताया कि अब तो जीव-जंतु पर्यावरण चुनौतियों की वजय से अपने बसेरे भी बदल रहे है।
  नैश्नल फिजिकल लैबोट्री, नई दिल्ली के डा एच एन दत्ता ने बताया कि हिमालय पर ग्लेशियर, हिमखंड विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रफ्तार से घट रहे है।  धरती का तापमान बढने से उत्तर और दक्षिण धु्रवों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है जिससे समुंद्र का जल स्तर बढ रहा है । तापमान बढने का मुख्य कारण हानिकारक गैसों का उत्सर्जन है। उन्होने बताया कि भारत को अन्र्टाटिका पर शोध करने की आवश्यकता है। उन्होने बताया कि अन्र्टाटिका खनीज व प्राकृतिक संसाधनो से समृद्घ है।   
पर्यावरणविद् डा राम निवास यादव ने बताया कि राज्यस्थान में आठ हजार चैक डैम बनाए गए है जिससे तीन नदिया बारह मासी हो गई है। उन्होने बताया कि वर्तमान में चल रहा विकास का नमूना पृथ्वी के पक्ष में नही है । उन्होने बताया कि जलस्तर बहुत नीचे चला गया है और जल समस्या भविष्य की एक गंभीर समस्या बनेगी। उन्होंने युवा पीढ़ी व समाज सेवकों से आहवान किया कि वे पर्यावरण से सम्बन्धित जानकारी को आम लोगों तक पहुंचाए ताकि इसमें आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।  उन्होने कहा कि हमें अधिक से अधिक पौधे लगाने चाहिए ताकि पर्यावरण को स्वच्छ रखा जा सके।
प्रो वी राज मनी ने कहा कि बदलती जीवन शैली ने पर्यावरण पर बुरा असर डाला है जिसके कारण इको सिस्टम प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर पर्यावरण इसी तरीके से दूषित होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
प्रो दिवेश के सिन्हा ने कहा कि पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए समाज के हर वर्ग को अपना योगदान देना होगा ताकि भावी पीढ़ी को एक अच्छा पर्यावरण प्रदान कर सके।  उन्होने चिंता जताई कि बेढ़ंग से हो रहे शहरीकरण एवं उद्योगीकरण के कारण जंगलों को काटा जा रहा है जिसके कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है जिसके कुप्रभाव हमारे सामने हैं।
प्रो सी पी कौशिक ने कहा कि मानव ने धरती के स्त्रोतों पर बहुत दवाब पैदा कर दिया है और अगर यह दवाब बरकरार रहा तो मानव जीवन की मूलभूत की चीजें विलुप्त हो जाएगी और जीवन संकट में आ जाएगा।
पर्यावरण विज्ञान एवं अभियंत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि वातावरण में बदलाव, स्वच्छ पानी की कमी, जंगलों का कटाव, जनसंख्या वृद्घि एवं पलायन, दूषित पानी की निकासी, जल, हवा व मिटï्टी प्रदूषण, ओजोन परत की क्षीणता, उर्जा खपत का बढऩा चिंता का कारण बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर हमने समय रहते पर्यावरण से सम्बन्धित गंभीर विषयों का समाधान नहीं ढूंढ़ा तो ये एक भयानक रूप धारण कर मानव जाति को विनाश की ओर धकेल देगें। उन्होने कहा कि जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र सुनामी से क्षतिग्रस्त होने की वजय से रेडियो ऐक्टिव किरणें निकल रही है जिसका कुप्रभाव सिर्फ जापान में ही नही संपूर्ण विश्व पर होगा। प्रकृति को बचाने के लिए हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। 
पृथ्वी दिवस के अवसर पर पर्यावरण विज्ञान एवं अभियंत्रिकी विभाग ने प्रश्नोत्तरी, सलोगन व पोस्टर की प्रतियोगिताओं आयोजित की। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में मनीष व मंजीत को प्रथम पुरस्कार, नतीश व उदयवीर को दूसरा व जयदीव व पूर्व को तीसरा पुरस्कार प्राप्त हुआ। पोस्टर प्रतियोगिता में वीणा पूनिया, प्रथम, प्रतीक द्वितीय व प्रियंका तीसरे स्थान पर रही। स्लोगन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार नीतिका ने, दूसरा पुरस्कार जितेन्द्र सैनी व तीसरा पुरस्कार सीमा सैनी ने प्राप्त किया। 
फोटो कैप्शन
फोटो-1
पृथ्वी दिवस के अवसर पर गुरू  जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के पर्यावरण विज्ञान एवं अभियंत्रिकी विभाग द्वारा आयोजित सेव मदर अर्थ विषय पर एक दिवसीय राष्टï्रीय कार्यशाला के अवसर पर उपस्थित जन।
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पृथ्वी दिवस के अवसर पर पर्यावरण संजीवनी नामक पत्रिका का विमोचन करते विश्वविद्यालय के कुलपति डा एम एल रंगा, कुलसचिव प्रो आर एस जागलान, डा राम निवास यादव, डा एच एन दत्ता, प्रो नरसी राम बिश्नोई व अन्य।
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पृथ्वी दिवस के अवसर पर प्रतिभागी को पुरस्कृत करते विश्वविद्यालय के कुलपति डा एम एल रंगा। साथ में है डा एच एन दत्ता व प्रो नरसी राम बिश्नोई।

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