Sunday, November 21, 2010

यह कैसा बाल दिवस, शिक्षा से पहले रोटी की चिंता

ओढां (चानन सिंह )  शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया है और छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने के लिए कानून में संशोधन कर इसे लागु किया गया है लेकिन जमीनी स्तर पर यह कानून सरकार व प्रशासन के लिए एक योजना बनाकर ही न रह जाए इसके लिए कार्यपालिका व वयवस्था में सामंजस्य बनाकर इस दिशा में कठोर निर्णय लेने होंगे ! सरकार ने जगह जगह बाल भवन निर्माण करवा रखे है और प्रतिवर्ष बालदिवस मनाया गता है तथा बच्चो के लिए नई  नई योजनायें बनाई जाती है लेकिन आज भी गावों व शहरों में कचरा बीनने, ढाबों, होटलों व भट्ठों पर बाल मजदूरी का नज़ारा सरकार भी देखती है और प्रशासन भी ! जो उम्र पढने लिखने, खेलने व मौज मस्ती की होती है उस आयु में बच्चे मज़बूरीवश खेतों, होटलों, लघु उद्योगों व दुकानों आदि में अपना बचपन खो रहे है ! जिले में बिहार उत्तरप्रदेश व राजस्थान से आये बच्चों को शिक्षा से पहले दो वक्त की रोटी की चिंता होती है जो उन्हें दिन भर काम करने के बाद मिलती है ! श्रम विभाग के अधिकारी व प्रशासन समय समय पर बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाने हेतु अभियान चलते हैं लेकिन फिर भी इन बच्चों का बाल मजदूरी के तहत शोषण होता है तथा अब तक इन्हें स्कूलों तक नहीं पहुंचाया जा सका है ! इस प्रकार सरकार व प्रशासन की कार्यप्रणाली व सरकारी योजनाओं की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है ! सरकार समय समय पर बाल कल्याणकारी योजनायें चलाती है लेकिन फिर भी बच्चे कचरा बीनते और इंट भट्ठों व ढाबों पर काम करते मिल जाते हैं क्योंकि सभी सुविधाओं व योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल पाता ! प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील, निशुल्क पुस्तकें, छात्रवृति, इंट भट्ठों पर शिक्षा देने जैसी अनेक योजनाओं जो हश्र हो रहा है वो सबके सामने है !
हमारे देश की सरकार, सामाजसेविओं व सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर इस बाल शोषण के अभिशाप को मिटाना होगा तथा अभिभावकों को भी जागरूक होना होगा तभी हम समाज को इस कलंक से बचा सकते हैं !

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